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मुकाम पर आज हू, शायद उसकी दुवाओ का असर है,

हमें अक्सर यह गुमान होता है, की जो कुछ हमें मिला है, या जो कुछ हमने पाया है, वो हमारी मेहनत और अक्ल का ही परिणाम है, मेहनत और अक्ल तो लगती ही है, इसमें कोई शक नहीं, लेकिन इन्सान को घमंड नहीं होना चाहिए क्योकि देने वाला वह एक परमात्मा है, न जाने कौन से हमारे कर्मो का फल हमें मिलता है, या किसकी दुआ से हमें मिलता है, हमें मालूम नहीं पड़ता बस यही इन्सान की समस्या है, की कुछ मिल भर जाये गर्दन अकड़ जाती है, सीना तन जाता है, हम अपने आप को पता नहीं क्या समझ लेते है, बस यही से हमारा पतन भी शुरू हो जाता है, इसलिए में मेरी से, घमंड से, अहंकार से हमें बचना है, क्योकि बड़े बड़े ज्ञानी भी अहंकार की मार से बच नहीं पाए. आईये सुनते है, एक बढ़िया कहानी जो इस प्रकार है,

सेठ गोपालदास, एक शानदार होटल का मालिक है, दूर दूर से लोग उसके यहाँ खाना खाने आते है, और तारीफ करते नहीं थकते, उसका व्यापर दिन रात बढता जाता है कई ग्राहक तो वहा रेगुलर खाना कहते है, ऐसे ही कुछ ग्राहक जो अक्सर आते है, गोपालदास को बताते है, की एक शख्स जो उम्र में काफी बुडा है, अक्सर सफेद्द कपडे पहनता है, पेट भर खाता है, लेकिन बिना पैसे दिये चला जाता है, गोपालदासजी सुनते और हस देते, कहते कोई बात नहीं, एक और ग्राहक जिसका नाम सोनू है, बड़ी कंपनी में नौकरी करता है, वह भी कई दिनों से यही बात देखता है, और सोचता है, की शायद यह बुडा व्यक्ति सेठ गोपालदास का कोई रिश्तेदार होगा या कोई नौकर होगा, अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए एक दिन गोपालदास जी से पूछ बैठा की माजरा किया है, वह रोज बिना पैसा दिया खाना कैसे खाकर जाता है, और आप उसे क्यों कुछ नहीं बोलते जबकि बाकी लोगो पर तो आपकी नजर होती है, मजाल है, कोई बिना पैसा दिए चला जाये. गोपालदास जी फिर मुस्कराए, कहते है, भाई, यह सवाल कई लोग पूछते है, और क्या ही अच्छा हो की इसे हम राज ही रहने दे, लेकिन सोनू कहाँ मानाने वाला था, बिज़नस एनालिटिक्स में एम् बी अ कर चूका था, जानना चाहता था, आखिर क्या राज है, तब गोपालदासजी उसे होटल के बाहर ले गए और कहा, की देखो मेरा होटल दिन में १० बजे खुलता है, यह बुडा व्यक्ति भी १० बजे ही आ जाता है, बाहर बैठे इंतजार करता है, की होटल में क्राउड आ जाये, फिर उस क्राउड में वह भी अन्दर आ जाता है, ताकि उसे कोई देख न ले, और आसानी से, खाना खाकर निकल जाये. में भी काफी उसके ऊपर नजर रखे था, देखता था की वह क्या करता है, सुबह १० बजे आकर ध्यान मुद्रा में बैठ कर करीब ११ बजे ही, अन्दर आता है, जबसे ये मेरी होटल में आने लगा मेरा व्यापर लगातार बढने लगा, आज पुरे शहर में हमारा नाम हो गया, शयद एक फ़क़ीर की ही दुआ है, जो इतने सारे कस्टमर हमारे बनते जा रहे है, इसलिए न मेने कभी इस फ़क़ीर को पैसे मांगे, न बात ही की है, लेकिन मन कहता है, की यह कोई फ़रिश्ता ही, है जो शयद क्राउड को मेरे लिए ही बुलाता है, ऐसा लगता है उसकी ही दुआ है, वर्ना में कुछ भी नहीं,, गोपालदास पहले भी वही खाना बनवाता था , शेफ भी वही, है, लेकिन इस दरवेश के आने के बाद कुछ चमत्कार ही हो गया है,

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