गुरु का ध्यान कर प्यारे, बिना इसके नहीं छुटना. जिंदगी के हर कदम पर हमें गुरु की जरूरत होती है, विशेषकर अध्यात्म के मार्ग पर हम जरा नहीं चल सकते और ८४ लाख यौनियो में से बाहर नहीं हो सकते . नाम के रंग में रंग जा मिले तोहे धाम निज अपना, कहते है, ये विलेज, ये शहर ये कौम ये देश हमारा नहीं हम यंहा के है नहीं, जैसे कोई मेले में जाकर गूम हो जाये और रास्ता भटकर किसी परदेश में रहने लगता है, ठीक उसी प्रकार हमारी हालत है, हम अपने असली देश को छोड़ ८४ लाख यौनियो में भटक रहे है, नहीं जानते की हमारा असली घर और देश कहाँ है. गुरु हमें घर वापसी का रास्ता बताता है, हमें नाम रूपी कुंजी दान में देता है, हमें न केवल raah बताता है, बल्कि साथ ले चलता है, थोड़ी सा हमारा प्रयास और शेष गुरु की रहमत हमें घर वापिसी कर देती है. हमें केवल विश्वास से गुरु पर भरोसा कर आगे चलना है. गुरु की सरन drid कर ले बिना इस काज नहीं सरना. कहते है, ८४ लाख यौनियो में से निकल कर घर पर पोअहुचना नामुमकिन है, इसके लिए हमें गुरु की शरण चहिये और भरोसा चहिये, तभी हम प्रयास कर अपना मनुष्य जनम में आने का मकसद पूरा कर सकते है, अब कहते है, लाभ और मान कियो चाहे, पड़ेगा फाई तुझे देना. इस जगत में कुछ भी फ्री नहीं है, हर काम की कीमत देना है, अगर कुछ लेना है, तो उतना ही देना भी है. जब संसार में कुछ लिया है, मतलब उधार किया है, यह ऊधारी कुछ तो ख़त्म हो जाएगी लेकिन अधिकाश उधारी ख़त्म नही हो सकती, पूर्व जन्मो की भी उधारी है, इसलिए बार बार यौनियो में जनम लेना पड़ता है, छुटकारा नहीं होता. इसलिए आगे कहा है, करम जो जो करेगा तू, वही फिर भोगना भरना. कर्मो का सिधांत पका है, बिना चुकता किये हम घर वापिस नहीं जा सकते हमें फिर जनम मरण के चक्र में आना पड़ेगा . जगत के जाल से ज्यो त्यों हटो मर्दानगी करना. इसलिए पूरा दम लगाना है, इस आने जाने के जाल को तोडना है. आगे कहते है, जीनोने मार मन डाला उन्ही को सुरमा कहना, जिस किसी व्यक्ति ने गुरु के बताये हुए रस्ते पर चलकर लाभ ले लिया वह पार हो गया. जो दुनीया में फंसे रह गए, वे फिर ८४ की और चल पड़े जो सुरमा बनकर लगे रहे उनका काम हो गया. असल में चाहते सब है, लेकिन मन की रुकावट है, जबरदस्त अडंगा है. बड़ा बेरी यह मन घाट में इसी का जितना कठिना. आसन नहीं है, मन को जीतना, गुरु नानक देवजी फरमाते है, मन जीते जग जीत, अब चुकी कुल प्रॉब्लम मन की है, फरमाते है, पड़ो तुम इशी के peeche और सब ही जतन तजना. फिर आगे कहते है, गुरु की प्रीत कर पहले, बहुर घाट शब्द को सुनना . असल में मनुष्य जनम का एक ही उद्देश्य है, की गुरु की मदद लेकर परमात्मा से मिलाप किया जाये. जब गुरु से प्रीत होगी , चाहत होगी, लागाव होगा, गुरु के द्वारा दिए गए नाम के साथ भीयह मेरी, करे मत और लगाव होगा जुडाव होगा, बात बन जाएगी. गुरु द्वारा बक्शे गए नाम के सहारे हम भीतर की और चलेंगे और अन्दर शब्द धुन को सुनेगे. इस तरह भजन बंदगी बनेगी, मन शांत होगा, हमें भीतर से कामयाबी का रास्ता मिलने लग जायेगा. अब कहते है, मान दो बात यह मेरी करे मत और कुछ जतना. नो नीड to do एनी other थिंग.जब मन कण्ट्रोल में आ जाये, तो कहते है, हार जाये मन तुझ से, चडा दे सूरत को गगना. हमें अपनी सुरत को ऊपर रूहानी मंडलों में ले जाना है. और सब का जग झूठा त्याग दे इशी की गहना. सो नहीं करना है, सबसे जरूरी काम सबसे पहले और संसार के काम बाद में. कहे राधास्वामी समझाई गहो आब नाम की सरना. कितना आसन काम है, गुरु से संबध बनाकर, उनकी शरण लेकर उनके बताये रास्ते पर ईमानदारी से चल पड़ना है, मनुष्य जनम लेने का उद्देश्य पूरा हो गायेगा, मुक्ति मिल जाएगी.
The big question before us is ” do we understand fully as what we are, what is our purpose, what way we should move, what should we do and so on– Perhaps our understanding is very limited, though we are called as supreme creature and we have fully developed faculties of all kinds to understand everything yet, the capacity is very limited. Even after trying the best no one has ever utilized his or her full capacity, besides this there are several hidden things (treasure) within us, which is beyond our strength एंड understanding.
गुरबानी का अध्यन करने से पता चलता है, की हर पृष्ठ पर जो मूल संद्देश है, वो है, एक ओ सतिगुर प्रसाद, जिसका मतलब है की परमात्मा एक है लेकिन उसकी प्राप्ति गुरु के माध्यम से उसके द्वारा दिए गए प्रसाद यानि बक्शीश , ब्लेस्सिंग्स, आशीर्वाद, नाम दान जो भी समझे उससे होगी. में अपना गुरु पूछ देखिया अवर नहीं थाव (१) बिना परमात्मा के और कोई जिव का सहारा है नहीं,
फिर देखो हमारे भ्रम कितने अधिक है, हमें लगता है, की सब कुछ हम ही कर रहे है , लेकिन यह पड़कर देखे (लेखे बोलन बोलना लेखे खाना खाओ , लेखे वाट चाल्यिया लेखे सुनि वेखोउ …गुरबानी का सही उचारण गुरु ग्रन्थ साहिब में ही देखे. अर्थ केवल इंतना समझ आ जाये के सब कुछ लेखे अनुसार हो रहा है. लेकिन माया के कारण हम असलियत को समझ नहीं पाते है, .. मनुष्य जनम में ही प्रभु से मिलने का समय है, लेकिन यंहा गुरु की नितांत आवश्कता है, उनके द्वारा बक्शे गए नाम की जरूरत है, उसकी कमाई की जरूरत है, गुरुमुख नाम सलाहिये होमे निवरी माहे का अर्थ है, गुरु के आदेश के अनुसार परमात्मा का नाम जपने से अंतर में होमे ख़त्म होती है, मन निर्मल होता है अहंकार की अग्नि शांत होती है. सारे सुखो को पाने का जरिया परमात्मा का नाम है, और यह गुरु द्वारा हि मिलता है, सुख सागर हर नाम है, गुरुमुख पाया जाये , अनदिन नाम धीयअ ये सहजे नाम समाये .(३). फिर हमें भ्रम है, की दुनिया और दुनिया की वस्तुवे पदार्थ रिश्ते नाते में से कोई तो हमारी सहयता करेगा, कोई तो साथ निभाएगा लेकिन हकीकत यह है, की ये सब गरज के रिश्ते है, कोई असली हमदर्द नहीं है, कोई साथ चलने वाला नहीं है, हमारा देखो सबसे नजदीक रिश्ता हमारे अपने शारीर से है, जिसका हम कितना ख्याल रखते है, वो ही हमारा साथ छोड़ देता है, रिश्ते नाते तब तक है, जब तक उनका या हमारा स्वार्थ है, इसलिए कबीर जी ने लिखा इक लख पूत सवा लख नाती तिह रावन घर दिया न बाती. फायदा किया हुआ. सोचने की बात है. पुत्र कलत्र और माया इन्ते कहो कवने सुख पाया . मेरो मेरो सभे कहत है, हित सो बंधियो चीत अंत काल कोई संगी नहीं, एह अचरज है रीत.
satguru meri suno pukar me terat barambbar. dudrmat meri dur nikaro mujhe kar lo charan aadhar. Tum bin ab koi n saharo apna kar mujhe samharo. me diin duhi at bhari jab chaho tab nistaro. me likhu guru ko paathi, man kinho bahu utpati. Guru mohe deeje apna dhaam , me to nikam bharm bas rahta, tum dayal lo moko thaam. Naa Jaanu kya paap kamye gahe n surat naam, kaisi karu jor nahi chaale, man nahi paye drir vishram. Hey Satguru ab daya vicharo me dukh me rahu aatho jaam. Na surat chde n man tharahve shabad mahatam nahi pathiyam. Lago meri nayya satguru paar, me bahi jaat jag dhar. Tum bin naahi ko kadhiyar lagado dubi khep kinaar.