जिंदगी ….एपिसोड ३
कभी पहेली, कभी सहेली. कभी सुख कभी दुःख, कभी धुप कभी छांव, कभी रात कभी दिन, और न जाने क्या क्या. आखिर जिंदगी है, तो जीना है, जीने के लिए ही है, जिंदगी में आने का मतलब कुछ बनाना भी है, जैसे हाउस, परिवार, रिश्ते नाते, हुकूमत, प्राइड, मान, बड़ाई, आदि, केवल आखिर में देखो मिला कुछ नहीं, हासिल हुई सिर्फ पछताई .क्योकि जब आखिरी वक्त आया, सब छोड़ के चल दिए, कुछ काम न आया. सिकंदर भी चलते बने, रावन भी इसी तरह हम सब भी चलते बनेगे , रुकेगा कोई नहो . ये जीवन है, इस जीवन का यही है, यही है, रंग रूप. जीव्वन चलने का नाम भी है, चलते रहो सुबह शाम, ये रास्ता कट जायेगा, तो क्या रस्ते ही नापने है, केवल चलते जाना है, फिर कोई कहता है, रुक जाना नहीं तू कही हार के, कुल मिलाके मतलब यह है, की चलते रहो, मुसीबते या परेशानी आएगी, दुःख सुख धुप छाव सब मिलेगा, कौशिश करो हस्ते रहो चलते रहो. हस्ते हस्ते कट जाये रस्ते , ख़ुशी मिले या गम, जिंदगी यु ही चलती रहे, जिंदगी तो चलेगी ही, चाहे हम रुक भी जाये, तहर ही जाये , हसना बंद कर दे, रोना शुरू कर दे, क्या होगा कुछ नहीं समय आगे बढता रहेगा , सांसे जो मिली है, पूरी होकर एक दिन हमें छोड़ देंगी हमें जाने को कह देंगी. येही जिंदगी है. अब चुकी रोलर कास्टर की तरह जिंदगी है, तो मजे से रहना है, कभी उचे कभी नीचे चलना तो है.
अब दूसरा सवाल यह है, की कुछ मिलना नहीं है, तो क्यों आखिर ये सब करना है, क्यों इतनी भागा दौड़ी, क्यों इंतनी परेशानी, किया मिलना है, जो हम सब यह करने लेगे. उतर है, कुछ नहीं, रावन सरिका चला गया लंका का सरदार. सोने की लंका भी गयी खुद रावन भी गया. एक लाख पूत सवा लाख नाती तिह रावन घर दिया न बाटी . ये हालत है, सबके लिए. फिर भी जिंदगी का कोई मकसद समझ नहीं आया. फरीद साहिब जी कहते है, चार गवा आ हएंड के चार गवाया सम लेखा रब मंगेसिया तू अहो केरे कम. फ़रमाया है, जब हम वापिस जायेंगे जवाब देना होगा परमात्मा को की जाकर हमने इस धरती पर क्या किया. शायद जबाब कोई होगा नहीं, गुरु नानक देवजी कहते है, खानअ पीना हसना सोना विसर गया है, मरना खासम विसार ख्वारी किनी ध्रिग जीवन नहीं रहना. सिर्फ खाना पीना करेंगे, समय बीत जायेगा खसम अर्थात परमात्मा को कब याद करेंगे. तो यंहा समझ में आता है, की ज्जिंदगी का मकसद भी है, गुरु अरुजुन देवेजी ने कहा था, भाई, परापत मनुख देवरिया गोविन्द मिलन की एह तेरी बरिया अवर काज तेरे किते न काम मिल साध सांगत भज केवेल नाम. तो समझ में आता है, की परमात्मा को याद करना है उनसे मिलाप करना है, यह जिंदगी का मकसद है, बिना साधू की शरण जाये यह काम होगा नहीं. मन मुरख है, समझता नहीं, कहता है, मुझसे समझदार भला इस दुनिया में कौन, क्या जररूरत है, गुरु के पास जाने की, राम राम कह लो अलाह अलाह कर लो, हम खुद ही कह सकते है, कर लेंगे. जरूर कह सकते है, लेकिन सवाल यह भी है, रावण वेद शास्त्रों को ज्ञाता था टीकाकार पंडित भी था, विधि विधान जानता था, उसकी मटी क्यों फिर गयी, क्यों गलत काम किया , क्यों सीता जी का हरण किया, नतीजा क्या हुआ सब बेकार चला गया , धर्मं करम, पूजा पाठ, नित नेम , लंका सब गया. घमंड के कारण रावन मारा गया. बिना गुरु के बिना उसकी शरण के, बिना उसके द्वारा बक्शे गए नाम के हम अपनी मर्जी से मुह से जुबा से, किताबो में पड़कर, ग्रन्थ बंच कर कुछ पा नहीं सकते मनुष्य जनम का मकसद समझ भी नहीं सकते , समझ कर चल नहीं सकते और उसे सफल नहीं कर सकते, चाहे जितने ज्ञानी,, पोअराक्रिमी बन जाये, परमात्मा से मिलाप कर नाही सकते, बस यु ही आते जाते रह सकते है, वो भी हमेश मनुष्य जनम में आयेगे कोई गौरंटी नहीं, गुरु अरुजुन देवजी ने कहाः था, कई जनम भाई, किट पतंगा, कई, जनम गज मीन कुरंगा वाली बात है, न जाने किस किस योनी में जाना होगा, बमुश्किल मनुष्य जनम मिला उसे भी यु ही गवा दिया. कह कबीर, ….जैसइ हाथ झड चला जुवारी ..