सुन रे मन अनहद बेन घट में मठ निरखो नैन, स्वामीजी महाराज ..शब्द १२,
पेज १४४, मीनिंग ..हे प्यारे मन, अन्दर जो शब्द धुन, लगातार हो रही है, जो सीधे परमात्मा के दरबार से आ रही है, उसे सुन, जरा अपने शरीर के अन्दर झांक कर देख, यह शरीर ही सच में वह मंदिर है, जन्हा परमातमाँ बैठा है, हमें खबर नहीं है, आ रही धुर से सदा तेरे बुलाने के लिए (तुलसी साहिब) हर मंदिर एह शरीर है, ज्ञान रतन प्रगट होई,
गुरु शब्द गहो उप्देष, रस पी पी करो प्रवेशा ..सवाल यह है क्या हम अपने प्रयासों सी भीतर जाकर परमात्मा से मिल सकते है, उनके दर्शन कर सकते है, नहीं, कयोकि हम अपना रास्ता भूल चुके है, न जाने कब से ८४ लाख यौनियो में भटक कर सब कुछ को चुके है, मौका मिला है, किसी कामिल मुर्शिद से रहबर से रास्ता जाने और उनके द्वारा बताये गए तरीके से अपने अन्दर खोज करे रेसीर्च करे अनुभव करे, गुरु के शरण में आने से रास्ता, मिलता है, वह हर कदम हमारी सहयता करता है,
चकर अब फेरो आई, धुन शब्द तभी खुल जायी …८४ लाख योनी में येही एक सुन्दर अवसर है, यह हमारी खुशकिस्मती है, के हम थोडा प्रयास करके, गुरु भक्ति में लग कर, अपने अन्द्दर हो रही उस आवाज शब्द धुन को पकर कर अपने आप को मुकत कर सकते है, अभी शब्द धुन हमें नहीं मिलती, लेकिन गुरु का सानिध्य होते ही, निरंतर अभ्यास करेंगे कम्याब्ब हो जायेंगे. लख चोरासी जोन सबयी मानस को प्रभ दी वदियाई इस पौड़ी ते जो नर चुके सो आये जाये दुःख पएंदा. (गुरु अर्जुन देवजी )
बिन नाम नहीं गत पाई, सतगुरु यो कहे बुझाई …बिना नाम के शब्द के मुक्ति हो नहीं सकती, यु तो इन्सान ने पूजा पाठ के अनेक तरीके निकाल दिए है, कई शोर्ट कट अपना लिए है, लेकिन ये मन मर्जी के साधन कामयाब नहीं होते, अनादी काल से एक ही साधन है, बिन नामे होर पूज न होवई भरम भूली लोका ई , (गुरु अमर दास जी ), सचे शब्द, सची पत होयी बिन नामे मुकत न पावे कोई, बिन सतगुरु को नाम न पावे प्रभ ऐसी बनत बअनाई है,