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सारे संसार को जीवन देने वाला.. जगजीवन साचा एको दाता.(१०४५) एक्स ब्रह दुतिया नास्ति का सन्देश. सबमे उसीका नूर समाया है, अवल अलाहा नूर उपायअ कुदरत सब बन्दे एक नूर ते जग उपजाया कौन भले कौन मंडे, (कबीरजी) सूफी संतो ने हमौस्त हम्मुस्ता कहा है, जो कुछ है, प्रभु रूप ही है,
गुरु शरण-जो सरणी आवे सरब सुख पावे. ११२२.
भजन करो छोडो सब आलस, निकर चलो कल ग्राम से. (स्वामीजी )
भरोसा- एक भरोसा एक बल, एक आस विश्वास, स्वाति सलिल गुरु चरण है, चात्रिक तुलसीदास.
मार्ग प्रभ का हर किया संतान संग जाता. (५), सतगुरु ते हर पाइए भाई, (३), बिन साध न पाइए हर का संग (१)बिन
नाम – बिन सबदे अन्तर आनेरा न वसत लाहे न चुके फेरा. सतगुर हाथ कुंजी होरत दर खुले नाहि गुर पुरे भाग मिलावानिया (३) नाम रहिओ साध रहिओ रहिओ गुरु गोविन्द कह नानक एह जगत में किन जपिओ गुरु मंत (९) नाम विसारे चले अन्मर्ग अंत काल पचुताही. (१) ओह बेला को हो बल जाऊ जित मेरा मन जपे हर नाव (५) १९१
सिमरण- ऐसा पूरा गुर देव सहा इ जा का सिर्म्रण बिरथा न जाई, तिस गुर के सदा बल जाइये हर सिमरन जिस गुर ते पाईये (५) एक स सिव जा का मनुराता, विसरी तिसे परायी ताता (५) छाड़ सिनायाप बहु चतुराई गुर पुरे की टेक टिकाई (५)१९० गुरु गुरु जप मीत हमारे, मुख उज्जल होवहे दरबारे. (५) कह ननक तिस गुर बलिहारी, जिस भेटत गत भाई हमारी. (५)१९१
घर परिवार – यो संसार सैगो नहीं कोई सांचा सगा रघुवरजी, मात पितासा सूत कुटुम्ब कबीलों सब मतलब के गरजी (मीरा ) मीरा के प्रभु अर्जी सुन लो चरण लगा ओ थारी मर्जी. माता पिता माया देह सिरोगी कुटुम्ब संजोगी. (१) sanchho
होमे – नानक आप छोड गुर माहि समाये. (३) नानक होमे रोग बुरे , जन्हा देखा तह एक बेदन आपे bakse सबद धुरे. (१ ) दात जोती सभ सूरत तेरी बहुत सियाप होमे मेरी (३)
जगत की अवस्था (नश्वरता) क्या मंगू कुछ थिर न रहई देखत नैन चल्यो जग जाई (क) एक लाख पूत सवा लाख नाती तिह रावण घर ख बर न पाई, जाते कुछ न पाईये . प्पशु चंगा है, खाकर दूध देता है, नर मरे नर काम न आवे, पसु मरे दस काज सवारे. अपने करम की गत में क्या जानो में क्या जानो बावरे. नैनो देखत एह जग जाई . अपने काम की गत में क्या जणू बओउरे , हाड जले जैसे लकड़ी का तूला, केस जले जैसे घास का पूला, कह कबीर तब ही नर जागे, जम का दंड मुड माहि लागे. होई खडे से नजदीक पर भेद किसी ने न देना .
काल=(९) कह नानक राम भज ले, अवसर जात है, बीत. ये तन जायेगे नंगे पेर जिनके लाख करोर. कोट कोट जोड़ के जोड़इ आख करोर . (क)
करता तो केवल एक है,- बिन गोविन्द न दीसे कोई करन कारवांन करता सोयी (५) एको सतगुर प्रसाद (१) एक्स बिन सब धंद है, सब मिठिया मोह्ह माय (५), एक्स बिन नाहि दूजा कोइ जा की दृष्ट सदा सुख होय (५) १९२ सभना गला विसरण एको विसर न जाओ (५) धंदा सब जलाई के गुर नाम दिया सच सुहोव् , एक्स बिन में अवर न जाना सतिगुर दिया बुझाई, (३) १२६०
धन सम्पति कुछ काम न आवे पड़े लड़ाई जाम से, सो धन sanchho जो चाले नाल., तिसही परापत जिस मस्तक भाग कह ननक त़ा की चरनी लाग. (५) ना कोय ले अयियो एह धन ना को ले जात (क)
कृपा = प्रभ कृपा ते भये सुहेले जनम जनम के बिछुड़े मेले. (५) १९१. कर कृपा प्रभ अपनी दात, नानक नाम जपे दिन रात. (५) १९२ तुमरी कृपा ते जपिए नाव तुमरीकृपा ते दरगाह थाव (५) १९२ तुरी क्रपा ते सदा सुख होय , तुम वसे तो दुःख न लागे, तुमरी कृपा ते भ्रम भो भागे, सगल घधरा के अन्ताजामी. तू समर्थ तू है मेरा स्वामी सभ कीच तुमते तू अंतरजामी (१९३) जा के हर वासियअ मन माहि ता को दुःख सुपने भी नाहि (१९२)५, कर क्रपा दीजे प्रभु दान नानक सिमरे नाम निधानु , भज मन मेरे एको नाम, जीय तेरे के आवे काम १९३ जेते जिय तेते सब तेरे तुमरी कृपा ते सुख घनेरे, जो कुछ वरते सभ तेरे बाना हउकुम बुझे सो सच समाना . १९२
पल में – निमख एक नाम दे, मेरा मन तन शीतल होए (५) सुके हरे किये खिन माहि (५)
सभ कुछ जनता है, – तू आपे सभ कुछ जनादअ किस आगे करी पुकार (३) १२५८
राख लहो प्रभु हम ते बिगड़ी,- राख लेयो प्रभु राखनहारा कहू नानक किया जंत विचारा (५) १९२
सर सलामत तो फिर पगड़ी पचास.
भ्रम- भ्रम भ्रम जोनी मनमुख भअर्मायी
विकार – काम न विसृयो क्रोध्ध न बिसरियो लोभ न छुटियो देवा , पर निदा मुख ते नहीं छुटी निहफल भाई सभ सेवा १२५३ (३)
जीते जी मरना – कबीर जिस मरने ते जग डरे मेरे मन आनंद, मरने ते ही पाइए पूरण परमानन्द. सह्जो मीरट के समय पीड़ा होy अपर, बिछु एक हजार ज्यो डंक लगे एकसार . अखी बाझुउ वेखना विन काना सुनना , PERA बाझु चलना विन हाथ करना , जिअभे बाझु बोलना एह जीवत मरना , नानक हुकुम पहचान के तो खासमे मिलना (२) मुक्ति मुक्ति सभ खोजत है, मुक्ति कहो कहअ पाईये जी (PALTU) मुक्ति की हाथ ओ पाव नहीं किस भांति सेती दिख लाईये जी. ज्ञान ध्यान की बात भुझिये या मन को खूब समझिए जी, पALTU मुए पर किंन देखा जीवत ही मुकता हो जाईये जी . साधो भाई जीवत ही करो आसा, जीवत समझे जीवत भुझे जीवत मुक्ति निवासअ (क) बहर्मुख होने से दुसरे के ज्ञान का पता लगता है,