अक्ल , बुद्धिः समझ
ऐसा कहा जाता है, की इन्सान को बहुत अक्ल मिली है, अन्य जीवो के बनिस्बत, और इन्सान उसका उपयोग भी कर रहा है, लेकिन फिर भी, सामाष्टि से ऐसा मौलुम पड़ता है, की अक्ल अलग अलग आदमी में अलग है, क्या पुपर वाले ने सही न्याय नहीं किया है, लेकिन ऐसा भी हो सकता है, ऊपर वाले ने अक्ल देने में कोई कसर नहीं छोड़ी, शयद हमने उसे ठीक से पहचाना नहीं, उसे ठीक से डेवेलोप नहीं किया है, जिसने किया है, उसने पाया है, किसीने विद्या, किसीने रूपया कमाया इसी अक्ल के कारण. कोई दुनिया में मर खप गया और खली हाथ ही लोट गया (अधिकतर ऐसे ही चले जाते है,, क्योकि सभी को खली हाथ ही जाना होता है,) काम क्रोध मोह लोभ और अहंकार सब कुछ लुट लेते है, यहाँ तक की शांति भी नहीं रहती, रूपया पैसा तो खेर छुटता ही है, दोस्त रिश्ते नाते सब छुट जाते है, इन्सान अकेला बेबस खली हाथ चलते बनता है, सब अक्ल धरी की धरी रह जाती है, ५वि पातशाही श्री गुरु अर्जुन्देव्जी महाराज ने फ़रमाया था (सा बुध दीजिये जित विस्रेह नाहि, सा मत दीजे जित तुध धियाई ….अर्थात क्रपा करो की में आपको नहीं भूलू, दूसरा ऐसी मत दीजे की में सदा सदा तुझे याद रखु और तेरी ही आराधना कर सकू. स्वास स्वास तेरे गुण गाव और नानक गुरु चरण जीवो .तुम करो दया मेरे साईं, ऐसी मत दीजे मेरे ठाकुर सदा सदा तुध धियाई , रावन जैसी मत नहीं चाहिए की अपना धरम ही भूल जाये.
अक्ल तेज हो जाये तो भी कुछ समझ नहीं पड़ता है, जैसे रावन की अक्ल तेज हो गई, हर किसी ने उसे समझया समझ अयेई नहीं . यंहा भाना अगर हा समझ ले तो भी कई बातो से बचा जा सकता है, गुरु के हुकुम में , कहने में भाने में रहेंगे सभ चिंता दूर हो जाएगी, शांति आ जाएगी, स्वीकृत भाव उत्पन्न हो जायेगा, रेसिस्टेंस ख़त्म हो जायेगा, हर हाल में खुश होना आ जायेगा.